संसाधन एवं विकास | Resources and Development | Sansadhan or Vikas | Class 10th | Samkalin Bharat | Geography Class 10 Chapter 1| Notes in Hindi | Mexatube

संसाधन एवं विकास 2025
NCERT भूगोल: समकालीन भारत-2, अध्याय 1

1. संसाधन क्या हैं?

परिभाषा:-

संसाधन वे सभी वस्तुएँ हैं जो हमारे पर्यावरण में उपलब्ध हैं और मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने में उपयोग की जा सकती हैं, बशर्ते उनके उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो, वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य हों, और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हों। उदाहरण के लिए, जल एक संसाधन है क्योंकि यह पीने, सिंचाई और ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोगी है, लेकिन इसके उपयोग के लिए पाइपलाइन, बाँध और तकनीक चाहिए।

Wind turbines on the shoreline silhouette against a vibrant sunset, promoting renewable energy.

विस्तृत बिंदु:-

  • प्रकृति और मानव का संबंध: संसाधन प्रकृति में मौजूद होते हैं, लेकिन मानव की प्रौद्योगिकी और आवश्यकता ही उन्हें संसाधन बनाती है। जैसे, पेट्रोलियम प्राचीन काल में बेकार था, लेकिन आज यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।
  • संसाधनों की विशेषताएँ:
    1. उपयोगिता: संसाधन का मूल्य उसकी उपयोगिता से तय होता है। जैसे, लकड़ी का उपयोग ईंधन, फर्नीचर और कागज के लिए होता है।
    2. सीमितता: संसाधन असीमित नहीं हैं; इनका अंधाधुंध उपयोग भविष्य के लिए खतरा पैदा करता है।
    3. परिवर्तनशीलता: समय और स्थान के साथ संसाधनों का महत्व बदलता है। जैसे, सौर ऊर्जा पहले कम महत्वपूर्ण थी, लेकिन आज यह नवीकरणीय ऊर्जा का आधार है।
  • संसाधनों के प्रकार:
    1. प्राकृतिक संसाधन: जल, मृदा, वायु, खनिज, वन आदि जो प्रकृति से प्राप्त होते हैं।
    2. मानव निर्मित संसाधन: मशीनें, सड़कें, भवन आदि जो मानव द्वारा बनाए जाते हैं।
    3. मानव संसाधन: लोगों की शिक्षा, कौशल और स्वास्थ्य जो विकास में योगदान देते हैं।
  • उदाहरण: हवा सभी जगह उपलब्ध है, लेकिन इसे बिजली बनाने के लिए पवन चक्कियों की जरूरत होती है। इसी तरह, खनिज तभी उपयोगी हैं जब खनन तकनीक उपलब्ध हो।
संसाधन का प्रकार
उदाहरण
विशेषताएँ
उपयोग
प्राकृतिक
जल, मृदा, खनिज
प्रकृति से प्राप्त, सीमित
जीवन, कृषि, उद्योग
मानव निर्मित
सड़क, मशीनें, भवन
मानव द्वारा विकसित, पुनर्जनन योग्य
परिवहन, उत्पादन, आवास
मानव संसाधन
शिक्षा, कौशल, स्वास्थ्य
मानव क्षमता पर निर्भर
विकास, नवाचार, उत्पादकता

विश्लेषण:

  • संसाधन मानव जीवन का आधार हैं। बिना संसाधनों के कोई भी सभ्यता फल-फूल नहीं सकती।
  • इनका मूल्य मानव की प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक मान्यताओं पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, यूरेनियम का उपयोग परमाणु ऊर्जा के लिए तब शुरू हुआ जब इसकी तकनीक विकसित हुई।
  • भारत जैसे देश में, जहाँ जनसंख्या अधिक और संसाधन सीमित हैं, इनके विवेकपूर्ण उपयोग और संरक्षण की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।

2. संसाधनों का वर्गीकरण

संसाधनों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है:

(i) उत्पत्ति के आधार पर

  • जैव संसाधन
  • अजैव संसाधन

(ii) संम्पन्यता के आधार पर

  • नवीकरणीय संसाधन
  • अनवीकरणीय संसाधन

(iii) स्वामित्व के आधार पर

  • वैयक्तिक संसाधन
  • सामुदायिक संसाधन
  • राष्ट्रीय संसाधन
  • अंतरराष्ट्रीय संसाधन

(iv) विकास की स्थिति के आधार पर

  • संभावी संसाधन
  • विकसित संसाधन
  • संचित संसाधन
  • भण्डार संसाधन

3. संसाधनों का विकास

परिभाषा:-

संसाधनों का विकास वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधनों का उपयोग इस तरह किया जाता है कि वर्तमान की जरूरतें पूरी हों और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी उपलब्धता भी बनी रहे। यह संरक्षण और पुनर्जनन पर केंद्रित है।

An expansive industrial mining facility with machinery and slag heaps in Brazil.

विस्तृत बिंदु:-

  • ऐतिहासिक संदर्भ: मानव ने शुरू में संसाधनों को प्रकृति की मुफ्त देन माना और उनका अंधाधुंध उपयोग किया। उदाहरण के लिए, औद्योगिक क्रांति के दौरान कोयले और लकड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन हुआ।
  • अंधाधुंध उपयोग के परिणाम:
    1. संसाधनों का ह्रास: जंगलों की कटाई से जैव विविधता नष्ट हुई, खनिजों का अत्यधिक खनन हुआ।
    2. पर्यावरणीय संकट: ग्लोबल वॉर्मिंग, ओज़ोन परत का क्षय, प्रदूषण और मृदा अपरदन जैसे खतरे बढ़े।
    3. सामाजिक असमानता: संसाधनों पर कुछ लोगों या देशों का कब्जा हो गया, जिससे गरीबी और संघर्ष बढ़े।
  • आधुनिक चुनौतियाँ: बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। जैसे, भारत में कोयले और जल की माँग तेजी से बढ़ रही है।
  • विकास का लक्ष्य: संसाधनों का ऐसा उपयोग जो आर्थिक विकास को बढ़ावा दे, पर्यावरण को संरक्षित करे और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करे।
  • विश्लेषण:

    • संसाधनों का विकास केवल उनके उपयोग तक सीमित नहीं है; इसमें संतुलन और दीर्घकालिक योजना शामिल है।
    • भारत में, जहाँ संसाधन असमान रूप से वितरित हैं (जैसे, झारखंड में खनिज और राजस्थान में जल की कमी), यह प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है।
    • इसके लिए नीतियाँ, तकनीक और जन जागरूकता जरूरी है ताकि विकास सतत और समावेशी हो।

4. सतत पोषणीय विकास

परिभाषा:-

सतत पोषणीय विकास वह विकास है जो वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करता हो, लेकिन भविष्य की पीढ़ियों की संसाधन उपयोग की क्षमता को खतरे में न डाले। यह पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक समानता के बीच संतुलन बनाता है।

nature, earth, sustainability, leaf, caution, cycle, green, ecology, globe, world, sustainable, environment, protect, recycling, hand, keep, photomontage, composing, composition, fantasy, imagination, earth, earth, earth, sustainability, sustainability, sustainability, sustainability, sustainability, ecology, sustainable, recycling

विस्तृत बिंदु:-

  • उद्गम: 1987 में संयुक्त राष्ट्र के ब्रुंडटलैंड आयोग की रिपोर्ट “हमारा साझा भविष्य” (Our Common Future) में इसकी परिभाषा दी गई। इसने सतत विकास को वैश्विक चर्चा का विषय बनाया।
  • रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन (1992):
    • कब और कहाँ: 3 से 14 जून 1992 को ब्राजील के रियो डी जेनेरो में आयोजित।
    • आयोजन: संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण और विकास पर सम्मेलन (UNCED – United Nations Conference on Environment and Development)।
    • उद्देश्य:
      1. पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करना।
      2. गरीबी उन्मूलन और संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग को बढ़ावा देना।
      3. जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि जैसे वैश्विक मुद्दों का समाधान करना।
    • प्रमुख परिणाम:
      1. जलवायु परिवर्तन संधि (UNFCCC): ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का ढाँचा।
      2. जैव विविधता संधि (CBD): प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण के लिए समझौता।
      3. एजेंडा 21: सतत विकास के लिए वैश्विक कार्य योजना, जिसमें स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर की नीतियाँ शामिल हैं।
      4. वन सिद्धांत: वनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश।
    • महत्व:
      • पहली बार पर्यावरण और विकास को एक साथ वैश्विक एजेंडा पर लाया गया।
      • विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया।
      • भारत जैसे देशों के लिए यह प्रेरणा बनी कि वे अपनी नीतियों में सतत विकास को शामिल करें।
  • सतत विकास के आयाम:
    1. पर्यावरणीय: प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, और जैव विविधता की रक्षा।
    2. आर्थिक: स्थायी रोजगार, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, और आर्थिक विकास।
    3. सामाजिक: शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और गरीबी उन्मूलन।
  • उदाहरण: सौर ऊर्जा का उपयोग पर्यावरण को बचाता है, रोजगार पैदा करता है, और समाज को ऊर्जा प्रदान करता है।
  • विश्लेषण:

    • सतत विकास आज की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती है, क्योंकि संसाधन तेजी से कम हो रहे हैं और पर्यावरण संकट बढ़ रहा है।
    • रियो सम्मेलन ने इसे एक ठोस रूप दिया और विश्व भर में नीतियों को प्रभावित किया। उदाहरण के लिए, भारत ने अपनी ऊर्जा नीति में नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा देना शुरू किया।
    • यह अवधारणा भारत जैसे देशों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।

5. भारत में संसाधन नियोजन

परिभाषा:-

संसाधन नियोजन वह व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें देश के संसाधनों की पहचान, सर्वेक्षण, मानचित्रण, और उनके उपयोग के लिए तकनीकी व संस्थागत ढाँचे का विकास किया जाता है, ताकि राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।

विस्तृत बिंदु:-

  • आवश्यकता: भारत में संसाधनों का वितरण असमान है। जैसे, कोयला झारखंड में प्रचुर है, लेकिन पंजाब में नहीं। इसलिए नियोजन जरूरी है।
  • चरण:
    1. संसाधनों का सर्वेक्षण और मानचित्रण: क्षेत्रीय संसाधनों की मात्रा, गुणवत्ता और स्थिति का आकलन। जैसे, भूगर्भीय सर्वेक्षण से खनिजों का पता लगाना।
    2. तकनीकी और संस्थागत ढाँचा: संसाधनों के उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी (जैसे, सौर पैनल) और संस्थाएँ (जैसे, योजना आयोग) बनाना।
    3. राष्ट्रीय समन्वय: संसाधन योजनाओं को राष्ट्रीय नीतियों (जैसे, पंचवर्षीय योजनाएँ) से जोड़ना।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में नियोजन की शुरुआत आजादी के बाद 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना से हुई, जिसमें कृषि, सिंचाई और बुनियादी ढाँचे पर ध्यान दिया गया।
  • उदाहरण:
    • झारखंड और छत्तीसगढ़: खनिज समृद्ध, लेकिन बुनियादी ढाँचे और शिक्षा में कमी।
    • राजस्थान: सौर ऊर्जा की प्रचुरता, लेकिन जल संकट।
    • गुजरात: औद्योगिक विकास, लेकिन पानी और चरागाहों की कमी।
  • चुनौतियाँ: क्षेत्रीय असमानता, जनसंख्या दबाव, और प्रौद्योगिकी की कमी।
  • विश्लेषण:

    • भारत में संसाधन नियोजन जटिल है क्योंकि यहाँ भौगोलिक और सामाजिक विविधता बहुत अधिक है।
    • यह प्रक्रिया क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और समग्र विकास के लिए जरूरी है।
    • सफलता के लिए प्रौद्योगिकी, नीति और जन भागीदारी का समन्वय अनिवार्य है।

6. संसाधनों का संरक्षण

परिभाषा:-

संसाधनों का संरक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाता है ताकि उनकी उपलब्धता भविष्य के लिए बनी रहे। इसमें पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग और संरक्षण शामिल है।

Close-up of a hand holding an axe, chopping a fallen tree log in a lush forest setting.

विस्तृत बिंदु:-

  • आवश्यकता: संसाधन सीमित हैं और जनसंख्या बढ़ रही है। अंधाधुंध उपयोग से भावी पीढ़ियाँ प्रभावित होंगी।
  • गांधी जी का दृष्टिकोण: “प्रकृति में हर किसी की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है, लेकिन किसी के लालच के लिए नहीं।” वे संसाधनों के न्यायसंगत और सीमित उपयोग के पक्षधर थे।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश शासन ने भारत के जंगलों, खनिजों और जल का शोषण किया, जिससे संसाधन ह्रास हुआ।
  • आधुनिक प्रयास:
    • 1968: क्लब ऑफ रोम ने “सीमित विकास” की अवधारणा दी, जिसमें संसाधन संरक्षण पर जोर था।
    • 1974: शूमाकर ने “स्मॉल इज ब्यूटीफुल” में छोटे पैमाने के उत्पादन और संरक्षण की वकालत की।
    • 1987: ब्रुंडटलैंड रिपोर्ट ने सतत विकास को परिभाषित किया।
  • उदाहरण: कागज का पुनर्चक्रण जंगलों को बचाता है, और वर्षा जल संचयन जल संकट को कम करता है।
  • विश्लेषण:

    • संरक्षण पर्यावरण संतुलन और आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी है।
    • भारत में, जहाँ संसाधनों पर दबाव अधिक है, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
    • नीतियों के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर प्रयास जरूरी हैं।

7. भूमि संसाधन

परिभाषा:-

भूमि एक मूलभूत प्राकृतिक संसाधन है जो कृषि, उद्योग, आवास, और परिवहन के लिए आधार प्रदान करती है। यह सीमित और अपरिवर्तनीय है, इसलिए इसका विवेकपूर्ण उपयोग जरूरी है।

Oil pumpjack in scenic agricultural landscape with lush fields and distant trees.

विस्तृत बिंदु:-

  • भारत में भूमि की प्रकृति:
    • मैदान: 43%, कृषि और बस्तियों के लिए उपयुक्त।
    • पर्वत: 30%, जल स्रोत और वनस्पति के लिए महत्वपूर्ण।
    • पठार: 27%, खनिज और ऊर्जा संसाधनों का भंडार।
  • भूमि उपयोग के प्रकार:
    1. वन क्षेत्र: प्राकृतिक वनस्पति और जैव विविधता का संरक्षण।
    2. कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि: बंजर, चट्टानी, और गैर-कृषि उपयोग (जैसे सड़कें, कारखाने)।
    3. परती भूमि: अस्थायी रूप से बेकार, पुनर्जनन के लिए छोड़ी गई।
    4. चरागाह और वृक्षीय फसल भूमि: पशुचारण और फल उत्पादन।
    5. शुद्ध बोया क्षेत्र: वह भूमि जो साल में कम से कम एक बार फसल के लिए उपयोग होती है।
  • शुद्ध और सकल बोया क्षेत्र:
    • शुद्ध बोया क्षेत्र: वह भूमि जो एक साल में एक बार बोई जाती है।
    • सकल बोया क्षेत्र: यदि एक ही भूमि पर एक से अधिक फसलें उगाई जाएँ, तो उसे सकल बोया क्षेत्र कहते हैं। जैसे, पंजाब में गेहूँ और धान की दोहरी फसल।
  • उदाहरण: भारत में 46% भूमि शुद्ध बोया क्षेत्र है, जो इसकी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था को दर्शाता है।
भूमि उपयोग
प्रतिशत (लगभग)
विवरण
उदाहरण
वन
21%
प्राकृतिक वनस्पति
मध्य प्रदेश के जंगल
शुद्ध बोया क्षेत्र
46%
फसल उत्पादन
पंजाब का गेहूँ क्षेत्र
परती भूमि
11%
अस्थायी रूप से बेकार
राजस्थान की परती
चरागाह
4%
पशुचारण
गुजरात के चारण क्षेत्र
गैर-कृषि उपयोग
8%
उद्योग, सड़कें
दिल्ली का शहरी क्षेत्र

विश्लेषण:

  • भूमि भारत की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण का आधार है। इसका सही उपयोग खाद्य सुरक्षा और औद्योगिक विकास के लिए जरूरी है।
  • जनसंख्या दबाव के कारण भूमि पर भार बढ़ रहा है, जिससे संरक्षण और नियोजन महत्वपूर्ण हो गया है।
  • क्षेत्रीय विविधता के कारण उपयोग पैटर्न अलग-अलग हैं, जैसे मैदानों में कृषि और पठारों में खनन।

8. भूमि निम्नीकरण

परिभाषा:-

भूमि निम्नीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें भूमि की गुणवत्ता और उत्पादकता कम हो जाती है, जिससे वह कृषि, वानिकी या अन्य उपयोगों के लिए अनुपयुक्त हो जाती है।

A stark image of cracked earth highlighting the impact of drought.

विस्तृत बिंदु:-

  • स्थिति: भारत में लगभग 130 मिलियन हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है, जिसमें से 28% वन क्षेत्र, 56% जल अपरदित क्षेत्र, और बाकी मानवजनित कारणों से प्रभावित है।
  • कारण:
    1. वनोन्मूलन: जंगल कटने से मृदा अपरदन और जल संकट बढ़ा।
    2. अति पशुचारण: राजस्थान और गुजरात में अधिक चराई से मिट्टी नंगी हुई।
    3. खनन और उद्योग: झारखंड और ओडिशा में खनन से भूमि प्रदूषित हुई।
    4. अति सिंचाई: पंजाब और हरियाणा में जलभराव और लवणता बढ़ी।
    5. औद्योगिक अपशिष्ट: सीमेंट और चीनी उद्योगों से धूल और रसायन मिट्टी को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • प्रभाव:
    • कृषि उत्पादकता में कमी।
    • जैव विविधता का नुकसान।
    • बंजर भूमि का विस्तार।
  • समाधान:
    • वनरोपण और वन प्रबंधन।
    • समोच्च जुताई और सोपान खेती।
    • रक्षक मेखला (पेड़ों की कतारें)।
    • बंजर भूमि का पुनर्जनन और अपशिष्ट प्रबंधन 
  • विश्लेषण:

    • भूमि निम्नीकरण पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा है।
    • मानव गतिविधियाँ इसके प्रमुख कारण हैं, इसलिए जागरूकता और नियंत्रण जरूरी है।
    • समाधानों से भूमि की गुणवत्ता सुधर सकती है और दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है।

9. मृदा संसाधन

परिभाषा:-

मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जो चट्टानों के अपक्षय, जैविक पदार्थों के विघटन, और जलवायु प्रभावों से बनती है। यह पौधों के लिए पोषक तत्व, जल और आधार प्रदान करती है और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

mountain, field, terraces, paddy, soil, rice, vietnam, paddy, nature, soil, soil, soil, soil, soil, rice, vietnam, vietnam, vietnam

विस्तृत बिंदु:-

  • मृदा निर्माण की प्रक्रिया:

    1. भौतिक अपक्षय: चट्टानों का टूटना (जल, हवा, तापमान से)।
    2. रासायनिक अपक्षय: ऑक्सीकरण और विघटन से खनिज बनते हैं।
    3. जैविक योगदान: मृत पौधे-पशुओं से ह्यूमस बनता है।
    4. जलवायु प्रभाव: वर्षा और तापमान मृदा की प्रकृति तय करते हैं।
  • भारत की प्रमुख मृदाएँ:
  1. जलोढ़ मृदा:
    • वितरण: गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान, पूर्वी तटीय क्षेत्र, नदी डेल्टा।
    • विशेषताएँ: रेत, सिल्ट और मिट्टी का मिश्रण; नई जलोढ़ (खादर) उपजाऊ और पुरानी (बांगर) कम उपजाऊ।
    • रासायनिक गुण: नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी, लेकिन पोटाश और चूना पर्याप्त।
    • उपयोग: धान, गेहूँ, गन्ना, दालें, तिलहन।
soil, hand, farm, garden, fertilizer, compost, organic, nature, brown garden, brown farm, brown gardening, soil, soil, soil, soil, soil, fertilizer
2. काली मृदा:
  • वितरण: दक्कन पठार (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश)।
  • विशेषताएँ: बेसाल्ट चट्टानों से बनी, चिकनी, नमी धारण क्षमता अधिक, कैल्शियम और मैग्नीशियम युक्त।
  • रासायनिक गुण: लोहा और चूना प्रचुर, लेकिन नाइट्रोजन और ह्यूमस कम।
  • उपयोग: कपास (काली रेगुर मृदा), मूंगफली, बाजरा, सोयाबीन।

3. लाल और पीली मृदा:

  • वितरण: ओडिशा, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक के पठारी क्षेत्र।
  • विशेषताएँ: लोहे की उपस्थिति से लाल, कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पीली, मोटे कण।
  • रासायनिक गुण: ह्यूमस और नाइट्रोजन की कमी, लोहा और एल्यूमिनियम अधिक।
  • उपयोग: बाजरा, मक्का, दालें, मूंगफली।
Detailed view of vibrant volcanic rock layers on Santorini, Greece, showcasing natural geological patterns.
4. लेटराइट मृदा:
  • वितरण: केरल, कर्नाटक, पश्चिमी घाट, असम, मेघालय।
  • विशेषताएँ: भारी वर्षा से निक्षालित (पोषक तत्व बह गए), लाल रंग, अम्लीय।
  • रासायनिक गुण: ह्यूमस और खनिज कम, लोहा और एल्यूमिनियम अधिक।
  • उपयोग: चाय, कॉफी, रबड़, काजू (उर्वरक के साथ)।
5. मरुस्थली मृदा:
  • वितरण: राजस्थान, गुजरात, हरियाणा के शुष्क क्षेत्र।
  • विशेषताएँ: रेतीली, कम नमी, लवणीय, हवा से अपरदन की संभावना।
  • रासायनिक गुण: जैविक पदार्थ कम, लवण और कैल्शियम अधिक।
  • उपयोग: सिंचाई से बाजरा, ज्वार, गेहूँ।

6. वन और पर्वतीय मृदा:

  • वितरण: हिमालय, पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर।
  • विशेषताएँ: अपरदन प्रवण, ऊपरी क्षेत्रों में पत्थरयुक्त, निचले क्षेत्रों में ह्यूमस युक्त।
  • रासायनिक गुण: अम्लीय, ह्यूमस की मात्रा ऊँचाई के साथ बदलती है।
  • उपयोग: चाय, फल (सेब, नाशपाती), मसाले।
A tranquil dirt road meanders through a lush green conifer forest, conveying a sense of peace and adventure.

विश्लेषण:

  • मृदा की विविधता भारत को विभिन्न फसलों के उत्पादन में सक्षम बनाती है, जो इसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है।
  • प्रत्येक मृदा की अपनी खूबियाँ और कमियाँ हैं, जिनका उपयोग क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार होता है।
  • मृदा संरक्षण जरूरी है, वरना अपरदन और निम्नीकरण से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

10. मृदा अपरदन और संरक्षण

परिभाषा:-

मृदा अपरदन वह प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत जल, हवा या मानव गतिविधियों से हट जाती है, जिससे उसकी उर्वरता नष्ट होती है।

विस्तृत बिंदु:-

  • प्रकार:
    1. अवनालिका अपरदन: तेज जल बहाव से गहरे गड्ढे बनते हैं। जैसे, चंबल घाटी की खड़।
    2. चादर अपरदन: जल के साथ मिट्टी की पतली परत बह जाती है।
    3. पवन अपरदन: शुष्क क्षेत्रों (जैसे राजस्थान) में हवा से मिट्टी उड़ती है।
  • कारण:
    • प्राकृतिक: भारी वर्षा, तेज हवाएँ, ढलान।
    • मानवजनित: वनोन्मूलन, अति पशुचारण, गलत खेती।
  • संरक्षण उपाय:
    1. समोच्च जुताई: ढलान के समानांतर खेती से जल बहाव कम होता है।
    2. सोपान कृषि: पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत।
    3. पट्टी कृषि: फसलों के बीच घास की पट्टियाँ।
    4. रक्षक मेखला: पेड़ों की कतारें पवन अपरदन रोकती हैं।
    5. वनरोपण: जड़ें मिट्टी को बाँधती हैं।

विश्लेषण:

  • मृदा अपरदन कृषि और पर्यावरण के लिए खतरा है, क्योंकि यह उर्वरता को कम करता है।
  • भारत में यह समस्या गंभीर है, खासकर हिमालय और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में।
  • संरक्षण उपायों से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और उत्पादकता बढ़ती है।

निष्कर्ष

  • संसाधन मानव जीवन और विकास का आधार हैं। इनका सही उपयोग और संरक्षण जरूरी है।
  • सतत विकास, नियोजन और संरक्षण से ही वर्तमान और भविष्य के लिए संतुलन बनाया जा सकता है।
  • भारत में भूमि और मृदा संसाधनों का महत्व अधिक है, और इनकी रक्षा खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।

The End

S.K Lakwal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *